Monday, June 12, 2017

चेतावनी (Warning) महाभ्रष्ट/महाचोर/महाबाहुबली पार्टी नेताओं/मंत्रियों से |

ये दोनो ही मामले ऐसे हैं जिसे गंभीरतापूर्वक लेने की आवश्यकता है क्योंकि कि दोनो नौकरशाह से जुड़ा मामला, यही अगर कट्टर पड़ोसी पाकिस्तान जैसा होता तो ऐसे मामलो मे महाभ्रष्ट/बाहुबली/चोर पार्टी "नेताओं/मंत्रियों" को नावज शरीफ/परवेज मूशर्रफ की तरह भीगी बिल्लियों की बना रहता या ऐसे नेताओं/मंत्रियों को "नजरबंद/देश निकाल"  कर दिया होता ! लेकिन ऐ ईन्डिया है यहाँ जनतंत्र/लोकतंत्र के नाम पर महाभ्रष्ट/महाचोर होने के बावजूद सीर्फ राजनितिक पार्टियों/मंत्रियों को "सच्चे/इमानदार नौकरशाहों/देश भक्तों तक को " बेईज्जती/तौहीन/मनोबल‌" नीचा करने तक का अधिकार प्राप्त तो है नही पर "लोकतंत्र" के नाम की आड़ मे इन्हे किसी को कुछ भी कहने/करने का अधिकार जबर्दस्ती लिया हुआ है | इसपर सभी देश के नागरिकों को भी सोचना है कि क्या संवैधानिक "समानता का अधिकार" का क्या अर्थ है, क्या यह "पार्टी नेताऒ/मंत्रियों" को छोड़कर है | अब देश का नागरिक जाग चुका है और आम जन सब देख, सुन, गौर कर समझ रही है | अगर महाचोर, बाहुबली, महाभ्रष्ट नेता नही बदले तो आम जनता सड़क पर घसीट कर लाकर फैसला देशहित मे लेगी, वर्ना सम्भल जाए ऐसे महाचोर/महाभ्रष्ट/बाहुबली नेता/मंत्रियों | "इन चोर नमूनो नेता/मंत्रियों को मिडिया के माध्यम से आम पब्लिक मे अपना चेहरा दिखाते शर्म भी नही आती, उपर से महाबेशर्म कि तरह हँसकर दाँत निपोर कर, ही-ही, हा-हा भी करता और चवा-चवा कर पब्लिक मे बक-बक भी करता रहता है, जैसे कोई देश के लिए मेडल जितकर लोगों के बीच आया‌ हो, ऐसे है हमारे पवित्र मंदिर (लोकसभा/विधान सभा) मे बैठने वालेे " बेशर्म, चोर, महाभ्रष्ट नेता/मंत्री |

Sunday, May 21, 2017

जम्मू कश्मीर- जम्मू कश्मीर, पाकिस्तान समर्थित-पाकिस्तान समर्थित, ये सबूत वो सबूत लेकिन पाकिस्तान पर कोई असर नही |


कान पक गया जम्मू कश्मीर/पाकिस्तान के बारे सुन-सुन कर सभी पार्टियों की सरकारों से | दर असल पाकिस्तान या हिन्दुस्तान दोनो मे से कोई नही चाहता समाधान | हिनदुस्तान का सबसे ज्यादा फौजी "असली देश भक्त शहीद के नाम पर कुर्बान हो रहा" और पाकिस्तान का भाड़े का ज्यादा आतंवादी | सबसे ज्यादा हानी/नुक्सान  हिन्दुस्तान को हो रहा है, हम किस आधार अपने आप को पाकिस्तान से ताकतवर मान रहे है, एक "सर्जिकल स्ट्राईक" पर, और उसका कोई असर ही नही", सीर्फ दावे ही दावे | बन्द करो यह "वोट वाला" राग अलापना, मेरे पास ये हथियार, मेरे पास वो हथियार है, पकिस्तान को ये कर सकते है, चीन को वो करने वाला प्राप्त कर लिया,  बन्द करो शब्द बाण और दिखाओ १२५/३० करोड़ वाली शक्ति, वर्ना बन्द करो देश वासियो को बेवकूफ बनाना | ना ही १९६५ युद्द से, १९७१ से और ना ही १९९९ के कार्गिल युद्द (जिसमे १९७१ युद्द से ज्यादा हमारे जवान शहीद) हुए, से जीत कर क्या सीख मिला पाकिस्तान को,  "कुछ नही" | हमने १९७१ युद्द मे जीता (कब्जा) किया हुआ छेत्र भी पाकिस्तान को वापस दे दिया, ९० हजार पाकिस्तानी "फौजी" बन्दी सेनाओं को की साल तक  पाल पोष कर सही सलामत पाकिस्तान को वापस दे दिया, जो कर्ज पाकिस्तान सारी जिन्दगी कभी नही चुका सकता | आज एक "कुलभूषण जाधव" वो भी एक "सेवा निवृत नौसैनिक अधिकारी" (जो अपना बिजनेस) कर रहा था, उसे जबरन अगवा कर गलत-सलत तथ्यों को पॆश कर "एक साल मे ही फाँसी" की सजा का ऐलान | और उसी बहाने "जम्मू -कश्मीर मे वही के वही या उससे और बुरे हालात पैदा करने के कारनामे | आखिर हमारा हिन्दुस्तान कब तक "आतंकवाद और बड़े-बड़े भ्रष्टाचार" पर "जीरो टोकरेन्स" साबित करेगा, या सीर्फ निन्दा, कायरता कह या वही  पाकिस्तान समर्थित राग का ढिंढोरा ही पीटता रहेगा | "आखिर १९४७ यानि आजादी के बाद से तो सभी पार्टियों की सरकारें तो " बड़े-बड़े भ्रष्टाचार और बड़ा जम्मू कश्मीर" मुद्दा पर असल मे वहीं का वही है |

Tuesday, May 9, 2017

आम आदमी पार्टी और आरविन्द केजरीवाल, हकीकत से कोसो दूर, अंदर कुछ और बाहर कुछ, इसकी दो-मुही बात और दो-धारी तलवार का कोई भरोसा के लायक नही |

"आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल" इसकी कमजोरी को कपिल मिश्रा ने पकड़ लिया और यह सही भी है केजरीवाल को मुंशी प्रेमचन्द लिखित " नमक का दारोगा" वाली मानसिकता है जब नौकरी मे ईमानदारी की कमाई "मासिक वेतन" तो इद का चाँद था "छोड़कर" आया ताकि "बाहरी/उपरी" आय के लिए ही तो नौकरी छोड़ "अपार सम्पत्ति" कमाने के उद्देश्य से ही तो राजनिति मे आया वर्ना नौकरी कोई चपरासी की तो थी  नही, ऎसी ही नौकरी के लिए लोग लाखो "रिश्वत" देता है, शायद दिया भी होगा, पर उससे संतुष्टी नही इसे चाहिए था "अथाह सम्पत्ति" जो आज राजनीति मे ही था इसका दुर्भाग्य और देश के और देश की जनता के लिए सौभाग्य जो केन्द्र की सत्ता मे बीजेपी/मोदी आ गए, जो इसके लिए सबसे बड़ा बाधक और अभिशाप बन गया, और यह पी.एम.मोदी का सबसे बड़ा विरोधी भी, यह (साफ जाहिर करता है कि पार्टी मे रहकर ये ईमानदार सरकार चाहता ही नही, जबकि पार्टी से बाहर था तो (सत्ता पाने) के लिए बीजेपी/काँग्रेस दोनो पार्टियों का एक जैसा विरोध करता था और जैसे ही सत्ता मिलि तो पहली बार कम सीट पर "काँग्रेस" से तालमेल कर सरकार बना कर "बीच सड़क पर संविधान" चलाने लगा, नौटंकीबाज, जबकि उसी काँग्रेस की पार्टी की सत्ता थी (शीला दिक्षित)  का जिसका घोर विरोधी ! यानि साफ है, "केजरीवाल व्यक्तिगत तौर पर बड़ा "घोटाला/भ्रष्टाचार" कर जल्द बड़ी हस्ती बनने का सपना लेकर ही पार्टी बनाया था, और सत्ता पाते ही सभी तेज-तर्रार नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया और खुद अपने बर्चस्व उस बर्चस्वता के पीछे "अपार कमाई" करना ही एक मात्र इसका उद्देश्य था, वर्ना बीजेपी/मोदी जी इसकी कौन सी व्यक्तिगत दुश्मनी थी, जो जरा-जरा सी बात पर बार-बार और इतना "मोदी-मोदी" विरोध का रट लगाए रहता था भी और है भी | साफ है इसे "सच्चा, ईमान्दार और काम करने वाला मेहनती" नही बल्कि इसके भ्रष्ट निति को कोई कुछ कहने या देखने वाला नही चाहिए, ताकि ये खुद ही "अपने आप मुह मियाँ मिट्ठू और तीसमार खाँ" बने रहना चाहता !

Saturday, May 6, 2017

नितिश कुमार कि अन्तिम पारी, अगर नही बदले तो बिहार की जनता बदल देगी |

क्या ये सब शराब के नशे मे हुआ, दर असल शराब के नशे मे लोग और सच बोलता है और यह प्रमाषणित भी  है | शिक्षा, अनुशासन व सुरक्षित प्रशासन देने से देश या राज्य आगे बढ़ता है और सब अपने आप अनुशासित रहता है, कोई चीज की बंदी या किसी एक तबके लोगों को उ्ँचा/नीचा दिखाकर कभी नही | नितिश शराब बंदी, दहेज बंदी, महिला आरक्षण, जातिवाद, दलित, बैकवार्ड, फारवार्ड और अन्य उद्घाटन ईत्यादी करते रहेंगे, आम जनता आपस मे छोटे-छोटे मुद्दे पर खूनी खेल खेलता रहेगा और ये "महाचोर, महाभ्रष्ट, जातिवादी, धर्मवादी ईत्यादि पार्टियों से हाथ मिलाकर आम‌ लोगो को ऐसे ही मरवाता कटवाता रहेगा | आखिर जिसके पास एके ४७ या अन्य अत्याधुनिक हथियार मिलता उसके पास इतना पैसा कहाँ से आता, फिर क्या बेरोजगारी की वजह है, साफ है दादागिरि+बाहुबलीगिरि जिसका हाथ महाभ्रष्ट सात्ताधारी राजनितिक दलो से कमोबेस रहता ही है, तभी इतना बड़ा कारनामो को सोची समझी साजिस कर ही अंजाम दिया जाता है | ऐसी ओछी, नासमझी सोच जैसी घटनाएँ बिहार या किसी अन्य के लिए यह दर्शाता है कि किताबी ज्ञान तो हुई पर सामाजिक सेवा भाव और देश सेवा भाव नगन्य है, ऐसी पढ़ाई लिखाई किस काम की जो लोग जुड़कर नही रहते और दिन ब दिन टूटते ही जा रहे, मानसिकता ऒछी ही होती जा रही, छोड़ दो ऐसी कुर्सी, फेक दो सी.एम. की उपाधी जब आम लोगो को सुरक्षा या सुरक्षित रहने का पाठ नही पढ़ा सकते ! कहाँ है सुशासन बाबु का " अनुशासन", व्यक्तिगत फायदे और पी.एम. बनने की सोच मे वर्तमान सी.एम. की कुर्सी को दाव पर लगा "महाभ्रष्टो" से " महाठगबंधनो " का सहारा लेकर किसी भी तरह के नीचता पर उतर आना कोइ होशियारी नही बल्कि दिमागी खोखलापन दर्शाता है, आज मिडिया/सोसल मिडिया या अन्य डिजिटल को बढ़ावा देना जो काफी सक्रिय है और आगे भी होता जाएगा, जिसे पारदर्शिता लाने और नित न ए प्रयोग कर उचाई पर लाने मे सीर्फ पी.एम. मोदी ही सबसे पहले और सबसे ज्यादा अहमियत दे रहे है जो देश का कोई और नेता बाद मे और बहूत तो आज भी विरोध ही कर रहा ! दुनिया्ँ चाँद से आगे निकल रही है और हमारे देशी नेताओ को "कुएँ का मेढक" वाली हाल ही नजर आ रहा, लानत है ऐसी ओछी मानसिकता वाले नेताओ पर !!!

देश की राजधानी दिल्ली का "निर्भया बलात्कार और मर्डर: जहाँ आम जन के सुविधा और देश‌ के सारे क्रिया कलाप के नियम/कायदे/कानून बनते है, वहाँ का सबसे क्रूरतम, विभत्त्स और दिल को दहला देनेवाली वो काली रात की घटना |

देश की राजधानी दिल्ली निर्भया केस: सदी का सबसे क्रूरतम, विभत्स और पूरे देश इन्सानियत के नाम पर दिल को दहला देनेवाला सबसे बड़ा कलंक/धब्बा | आखिर आ ही गया जैसा उम्मीद था वैसा ही फैसला | लेकिन क्या हमारा सिस्टम आज की २०१७  सदी से मेल खाता है , शायद नही | अगर बचाव पक्ष का वकील के घर वाले के किसी अपने ही औलाद या नजदीकी रिश्तेदारों के साथ ऐसी घटना होती तो क्या यही वकील इसी केस को इतने दिन तक लड़ने की हिम्मत करता, शायद नही | इन्सान पैसे के लिए कितना गीर सकता है, की पूरा देश एक तरफ और "भ्रष्ट वकील" भी तो हो सकता है वो एक तरफ, जो यह जानते हुए भी "गलत" है को किसी भी तरह झूठ को सच साबित कर केस को लम्बित या मोड़ लाया जा सके | इसका ईलाज ढूंडना अति आवश्यक, ऐसे केसेस जो पहली दृष्टि मे ही साफ-साफ सच जाहिर हो, ६ महीना मे ही फैसला आना और क्रियान्वयन भी हो जाना चाहिए, तब लोगों को कानून का डर लगेगा वर्ना ऐसे ही चलता रहेगा जैसे "निर्भया" बाद भी ४/५ सालो मे देश मे हजारो रेप/मर्डर केसेस होते रहे और कानून का कोई खौफ नही और लगभग सारे के सारे केसेस पेन्डिन्ग मे | "चलता रहेगा तारीख पर तारीख, भरते रहेंगे अपनी जेबें "झूठ के ठेकेदार  महाभ्रष्ट वकील और चलता रहेगा सालो साल, कुछ गवाह मर जायेंगे या मार दिए जाऐंगे, सबूत से छेड़-छाड़ और फिर सबूत अभाव मे छूट जाएगा असली अभियुक्त और फिर जाकर/गैंग बनाकर करता रहेगा वैसे ही वहशीयाना हरकत और कुछ का होगा नेताओ/मंत्रियों बड़े रसूखदारो का छत्रछाया और ऐसे ही फलता-फूलता रहेगा देश, राज्य या समाज का " असामाजिक तत्व |

Monday, May 1, 2017

अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस, सीर्फ दिवस और भारतीय औद्योगिक संस्थान ही सबसे बड़ा शोषक !

इतिहास गवाह है, महाराष्ट्र, बिहार, यूपी, इत्दियादि कई ऐसे राज्य हैं जिनमे औद्योगिक नियम और श्रम कानूनो को सख्ती और सही तरीके से लागू/अमल कर मजदूरों के शोषण के खिलाफ जोर डाला गया और वहाँ की औद्योगिक ईकाईयाँ/संस्थाने बंद कर दी गई जो आज भी चालू नही हो सका | औद्योगिक कम्पनियाँ सीर्फ भारी भरकम मुनाफे के पीछे ही रहती है और अधिकांश कम्पनी मालीक इसी उद्देश्य से या तो बंद कर अन्य राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशो मे पलायन कर जाता है, या घाटा दिखा बैंको का कर्ज नही अदा करने के बहाने खुद को "दिवालिया" घोषित कर और बंद कर ताला जड़ कामगारों को तनख्वाह तक रोक दिया जाता और देश से बाहर भी भाग जाता या भगा दिया जाता, जैसे आज "विजय माल्या" !
आज किसी भी राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों के औद्योगिक ठिकानो मे देश/राज्य का एक भी सम्बन्धित अधिकारी जैसे महीना तो क्या सालो साल तक संस्थानो मे व्यक्तिगत नही पहुँच पाता जो यह देखे कि मजदूरों को सभी सुविधाएं उपलब्ध है या नही जैसा कि श्रम कानूनो ने उल्लिखित है, कोई कुछ नही देखता और सीर्फ और सीर्फ कार्यालय मे ही दिन भर "ईटिंग, मीटींग और सिटंग" मे ब्यस्त दिखाकर टाइम पास कर और वसूली मे ही लिप्त रहता, लेकिन "व्यक्तिगत संस्थान‌ का  दौड़ा कोई भी रूटीन तौर पर नही करता | इस पर आज भी " अफसरशाही" हावी है, जब तक देश मे अफसर शाही हावी रहेगा, नेता/मंत्री कितना भी स्कीम/योजना लागू करेंगे ये महाभ्रष्ट, कामचोर, घमन्डी "अधिकारी" कभी भी कोई कार्य सफल नही होने देगा | अब लाल बत्ती गई है, आफिस मे भी समय पर आना, तय समय मे आम जन का कार्य निपटाना और रोज इनका भी आम जन की समस्या सूनने के लिए दरबार लगाना अति आवश्यक है साथ-साथ "श्रम कानून को पूरे देश मे जमीनी स्तर पर समानान्तर तरीके से लागू करवाना आवश्यक |

Saturday, April 22, 2017

देश या राज्य के अदालतों मे "अधिक केसेस और लम्बित केसेस" का मामला |

देश के अदालतों मे केसेस, अनुभव यह कहता है कि, सूदूर देहातों/ग्रामीण छेत्रों मे ५०% से अधिक केसेस बेईमानो, दबंगो, जमीन्दारों, बाहुबलियों इत्यादि जैसे लोगों द्वारा जान बूझकर चल/अचल सम्पत्तयों को दबंगई कर जबरन कब्जा कर समस्याओं को बढ़ा-चढा पैदा कर  केसेस बनाया गया है, जो मुख्य वजह है "अधिक केसेस" और लम्बित केसेस का, और इसमे मुख्य भूमिका "स्थानिय पुलिस" का भी होता है जो रिश्वत के चक्कर मे पैसेवाले से पैसे ऐंठकर एफ.आई.आर. मे बढ़ा-चढ़ाकर लिखकर देता है, उस पुलिस पर भी "गलत एफ.आई. आर." लिखने के जूर्म मे केसेस/सजा का प्रावधान हो, तो अपने आप देश के अदालतों मे केसेस आधे हो जाऐंगे, क्योंकि देश/राज्य के आधे से ज्यादा केसेस "गलत और फर्जी" आधार पर पुलिस प्रशासन के साँठ-गाँठ से ही होता है और लगभग आधा ही केसेस जेनून होते है जिसे "सचमुच अदालती" कार्रवाई की आवश्यकता होगी, इसपर कोई ठोस उपाए की अति आवश्यकता है |